[25] आज, डेविस, बिड्डुल्फ और बालाशेक के १ ९ ५ २ में बनायी वाक अभिज्ञान प्रणाली, जिसमें १ से १ ० तक की बोली को १ ०० % परिशुद्धता से पहचानने की क्षमता थी, की तुलना में दुनिया काफी आगे जा चुकी है।
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वाक अभिज्ञान: किसी मनुष्य के वचनों की धारा को सद्य अनुक्रिया समझ पाना क्म्प्यूटर के लिये अत्याधिक कठिन है, क्योंकि इसमें कई तरह के घटबढ़ देखे जाते हैं, जैसे कि अर्थवतता, शब्द का उच्चारण, ध्वनि की प्रबलता, पास पडोस के ध्वनिकता, वक्ता का मिजाज या तबियत (सर्दी तो नही लगी), इत्यादि।
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वाक अभिज्ञान: किसी मनुष्य के वचनों की धारा को सद्य अनुक्रिया समझ पाना क्म्प्यूटर के लिये अत्याधिक कठिन है, क्योंकि इसमें कई तरह के घटबढ़ देखे जाते हैं, जैसे कि अर्थवतता, शब्द का उच्चारण, ध्वनि की प्रबलता, पास पडोस के ध्वनिकता, वक्ता का मिजाज या तबियत (सर्दी तो नही लगी), इत्यादि।[25] आज, डेविस, बिड्डुल्फ और बालाशेक के १९५२ में बनायी वाक अभिज्ञान प्रणाली, जिसमें १ से १० तक की बोली को १००% परिशुद्धता से पहचानने की क्षमता थी, की तुलना में दुनिया काफी आगे जा चुकी है।
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वाक अभिज्ञान: किसी मनुष्य के वचनों की धारा को सद्य अनुक्रिया समझ पाना क्म्प्यूटर के लिये अत्याधिक कठिन है, क्योंकि इसमें कई तरह के घटबढ़ देखे जाते हैं, जैसे कि अर्थवतता, शब्द का उच्चारण, ध्वनि की प्रबलता, पास पडोस के ध्वनिकता, वक्ता का मिजाज या तबियत (सर्दी तो नही लगी), इत्यादि।[25] आज, डेविस, बिड्डुल्फ और बालाशेक के १९५२ में बनायी वाक अभिज्ञान प्रणाली, जिसमें १ से १० तक की बोली को १००% परिशुद्धता से पहचानने की क्षमता थी, की तुलना में दुनिया काफी आगे जा चुकी है।
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वाक अभिज्ञान: किसी मनुष्य के वचनों की धारा को सद्य अनुक्रिया समझ पाना क्म्प्यूटर के लिये अत्याधिक कठिन है, क्योंकि इसमें कई तरह के घटबढ़ देखे जाते हैं, जैसे कि अर्थवतता, शब्द का उच्चारण, ध्वनि की प्रबलता, पास पडोस के ध्वनिकता, वक्ता का मिजाज या तबियत (सर्दी तो नही लगी), इत्यादि।[25] आज, डेविस, बिड्डुल्फ और बालाशेक के १९५२ में बनायी वाक अभिज्ञान प्रणाली, जिसमें १ से १० तक की बोली को १००% परिशुद्धता से पहचानने की क्षमता थी, की तुलना में दुनिया काफी आगे जा चुकी है।
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वाक अभिज्ञान: किसी मनुष्य के वचनों की धारा को सद्य अनुक्रिया समझ पाना क्म्प्यूटर के लिये अत्याधिक कठिन है, क्योंकि इसमें कई तरह के घटबढ़ देखे जाते हैं, जैसे कि अर्थवतता, शब्द का उच्चारण, ध्वनि की प्रबलता, पास पडोस के ध्वनिकता, वक्ता का मिजाज या तबियत (सर्दी तो नही लगी), इत्यादि।[25] आज, डेविस, बिड्डुल्फ और बालाशेक के १९५२ में बनायी वाक अभिज्ञान प्रणाली, जिसमें १ से १० तक की बोली को १००% परिशुद्धता से पहचानने की क्षमता थी, की तुलना में दुनिया काफी आगे जा चुकी है।
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